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केरल के राज्यपाल के बयान पर सीपीएम-कांग्रेस का हमला !!

केरल राज्यपाल के विवादित बयान पर सीपीएम और कांग्रेस का जबरदस्त हमला – सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर छिड़ी राजनीतिक जंग

केरल की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के उस बयान पर सत्तारूढ़ सीपीएम और विपक्षी कांग्रेस ने जमकर हमला बोला है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था जो राज्यपालों की बिलों को रोकने की शक्तियों पर लगाम लगाता है। यह विवाद अब राज्य और केंद्र के बीच नए संवैधानिक संकट का रूप लेता नजर आ रहा है।

केरल के राज्यपाल के बयान पर सीपीएम-कांग्रेस का हमला

विवाद की पूरी पृष्ठभूमि

  • सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर को एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित बिलों को अनिश्चित काल तक रोककर नहीं रख सकते
  • कोर्ट ने केरल राज्यपाल को निर्देश दिया कि वह 8 लंबित बिलों पर तुरंत फैसला लें
  • इसके जवाब में राज्यपाल ने मीडिया से बातचीत में फैसले को ‘संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन’ बताया
  • उन्होंने यहां तक कहा कि “अगर कोर्ट संविधान की व्याख्या इस तरह करेगा तो राज्यपाल का पद औपचारिकता मात्र रह जाएगा”

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

सीपीएम का रुख:

  • मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने राज्यपाल के बयान को ‘खतरनाक और असंवैधानिक’ बताया
  • पार्टी नेता एम. स्वराज ने आरोप लगाया कि “राज्यपाल संविधान की मर्यादा लांघ रहे हैं”
  • सीपीएम ने राजभवन के सामने विरोध प्रदर्शन की घोषणा की

कांग्रेस की प्रतिक्रिया:

  • विपक्ष के नेता वी.डी. सत्येशन ने कहा कि “राज्यपाल का बयान न्यायपालिका की अवमानना है”
  • पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने मांग की कि राज्यपाल को तुरंत अपने शब्द वापस लेने चाहिए
  • कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने कहा कि “यह केरल की जनता के प्रति अपमान है”

संवैधानिक विशेषज्ञों की राय

संविधान विशेषज्ञ डॉ. राजीव धवन का कहना है कि “राज्यपाल का यह बयान पूरी तरह गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ संविधान की मूल भावना को स्पष्ट किया है।”

वहीं, पूर्व सॉलिसिटर जनरल जी. वैद्यनाथन ने चेतावनी दी कि “अगर राज्यपाल न्यायपालिका के फैसलों पर सवाल उठाएंगे तो यह संवैधानिक संकट पैदा करेगा।”

भाजपा का स्टैंड

  • राज्य भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने राज्यपाल का समर्थन करते हुए कहा कि “वे संविधान की रक्षा कर रहे हैं”
  • केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन ने ट्वीट किया कि “केरल सरकार कोर्ट के फैसले का गलत फायदा उठाना चाहती है”

आगे की राह

  • सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार राज्यपाल के खिलाफ राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजने पर विचार कर रही है
  • विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करने की योजना बनाई जा रही है
  • संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष फिर से पहुंच सकता है

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं

ऐतिहासिक संदर्भ

यह पहली बार नहीं है जब केरल में राज्यपाल और सरकार के बीच तनाव पैदा हुआ है। 2022 में भी 21 बिल लंबित रखने को लेकर विवाद हुआ था। संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास बिलों को रोकने की सीमित शक्तियां हैं, जिसे लेकर यह विवाद गहराता जा रहा है।

जनता की प्रतिक्रिया

त्रिशूर के रहने वाले अधिवक्ता प्रकाश पी. ने बताया, “यह स्थिति चिंताजनक है। हम चाहते हैं कि संवैधानिक संस्थाएं एक-दूसरे का सम्मान करें।”

कोच्चि यूनिवर्सिटी के छात्र नेता अल्बी मैथ्यू ने कहा, “राज्यपाल को यह समझना चाहिए कि वे निर्वाचित सरकार के खिलाफ नहीं खड़े हो सकते।”

राष्ट्रीय प्रभाव

यह विवाद अब राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय बन गया है:

  • राज्यसभा में विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाने की धमकी दी है
  • केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग तेज हो रही है
  • विधि आयोग से संविधान में राज्यपाल की भूमिका स्पष्ट करने की मांग उठ रही है

निष्कर्ष

केरल में यह संवैधानिक संकट राज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच सत्ता संघर्ष का नया अध्याय लिख रहा है। जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से संवैधानिक सीमाएं तय की हैं, वहीं राज्यपाल का रुख संस्थागत टकराव को बढ़ावा दे रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राज्यपाल अपने बयान से पीछे हटते हैं या फिर यह विवाद और गहराता है।

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